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मृत संवेदनाएं: प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टर डेडबॉडी का करते रहे इलाज

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श कु श मिश्र
पीलीभीत। कभी हॉस्पिटल को मंदिर कहा जाता था,लेकिन अब प्राइवेट अस्पताल में इलाज नहीं, डेड ट्रीटमेंट स्कैम चलता है। बिस्तर पर मरीज हो या ष्ठद्गड्डस्र क्चशस्र4, बिल वही ङ्कङ्कढ्ढक्क हुआ यूं कि 20 साल का विष्णु, एक्सीडेंट के बाद गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचा, परिजनों को लगा भगवान बचा लेंगेज् पर यहां भगवान नहीं, डेड बॉडी के गब्बर बैठे थे! परिजनों के मुताबिक विष्णु की मौत उसी दिन हो चुकी थी, लेकिन प्राइवेट अस्पताल ने युवक शव को ढ्ढष्ट में डालकर ऑपरेशन-थियेटर का खेल शुरू कर दिया। परिजनों को ‘॥शश्चद्ग’ के इंजेक्शन लगाए और रुपयों की ड्रीप लगा दी। पहले 50 हजार एडवांस, फिर 1 लाख ऑपरेशन के नाम पर ले लिए गए। विष्णु की क्चशस्र4 को 3 दिन तक ढ्ढष्ट में सुला कर 3 लाख का क्चद्बद्यद्य बना दिया गया। किसी को शक न हो, इसलिए डेड बॉडी के आगे सलाइन की बोतलें लटकाईं, रिश्तेदारों को ढ्ढष्ट से दूर रखा — अंदर बॉडी सड़ती रही, बाहर रुपया बहता रहा। ये है डेड ट्रीटमेंट स्कैम, जिसमें इंसान का शरीर भी ‘बिजनेस मॉडल है।
चीखते सवालों पर प्रशासन की खामोशी पर सवाल
देश में प्राइवेट अस्पताल मरीजों को जमाकर लूट रहे है। पर सरकार खामोश है। रोज इस तरह के फ्रॉड के किस्से निकलते हैं, लेकिन मजाल है सरकार के कान पर जूं रेंग जाए! जिनके जिम्मे निजी अस्पतालों की लगाम कसने की जिम्मेदारी है — वही आंख, कान, मुंह बंद करके बैठे हैं। कितनी ही शिकायते दर्ज होती हैं, कितनी ही स्नढ्ढक्र होती हैं — लेकिन कार्रवाई? वो गब्बर के डायलॉग जितनी ही हवा में उड़ जाती हैं। निजी अस्पताल संचालकों के हौसले बुलंद हैं, क्योंकि सरकार की चुप्पी ही इनका लाइसेंस है।
डेड बॉडी ट्रीटमेंट स्कैम यानी इलाज का धंधा, लूट का मंत्र!
निजी अस्पताल अब सिर्फ लूट नहीं — ये ‘सिस्टमेटिक बिजनेस है। डॉक्टर के कोट के पीछे करोड़ों का घोटाला छुपा है। मरीज ढ्ढष्ट में हो या मर जाए — बिल का मीटर चलता रहेगा। ऑपरेशन, आईसीयू, एंबुलेंस, हर चीज के नाम पर परिवार को निचोड़ा जाएगा। यह स्कैम तो केवल एक नमूना है। सरकार की नालायकी ने निजी अस्पतालों को लूटने की खुली छूट दे दी है। अब सवाल ये है — कब तक? कब तक डेड बॉडी से भी पैसे बनाए जाएंगे?

सरकार फेल: जिम्मेदारी या मजबूरी? 
सरकार का रवैया देखिए — पुलिस मौके पर आई, ष्टरू॥ह्र बोले — ‘लिखित शिकायत नहीं आई!’ वाह सरकार! परिजन लूट के बाद कागज लेकर दौड़ें — तब कार्रवाई? सरकार की ये चुप्पी ही निजी अस्पताल की सबसे बड़ी वजह है। न जांच, न सजा — बस फाइलों में दबे केस, और लुटता आम आदमी! अब सवाल साफ है कि इस स्कैम पर कब चलेगा असली गब्बर का डंडा? अक्षय कुमा की गब्बर फिल्म में जैसे लुटेरों को धूल चटाई जाती थी, वैसे असली गब्बर अब चाहिए — जो डेड बॉडी ट्रीटमेंट स्कैम करने वालों को जेल भेजे। निजी अस्पताल के फ्रॉड पर नकेल कसे, इस तरह की हरकत करने वालों के लाइसेंस रद्द किए जाएं। वरना ये बार-बार किसी के घर का चिराग बुझाकर भी बड़े बड़े बिल बनाए जाएंगे। फिर होगा डेड बॉडी ट्रीटमेंट स्कैम । 
सरकार फेल: जिम्मेदारी या मजबूरी? 
सरकार का रवैया देखिए — पुलिस मौके पर आई, ष्टरू॥ह्र बोले — ‘लिखित शिकायत नहीं आई!’ वाह सरकार! परिजन लूट के बाद कागज लेकर दौड़ें — तब कार्रवाई? सरकार की ये चुप्पी ही निजी अस्पताल की सबसे बड़ी वजह है। न जांच, न सजा — बस फाइलों में दबे केस, और लुटता आम आदमी! अब सवाल साफ है कि इस स्कैम पर कब चलेगा असली गब्बर का डंडा? अक्षय कुमा की गब्बर फिल्म में जैसे लुटेरों को धूल चटाई जाती थी, वैसे असली गब्बर अब चाहिए — जो डेड बॉडी ट्रीटमेंट स्कैम करने वालों को जेल भेजे। निजी अस्पताल के फ्रॉड पर नकेल कसे, इस तरह की हरकत करने वालों के लाइसेंस रद्द किए जाएं। वरना ये बार-बार किसी के घर का चिराग बुझाकर भी बड़े बड़े बिल बनाए जाएंगे। फिर होगा डेड बॉडी ट्रीटमेंट स्कैम । 

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